गुर्दे हमारे शरीर के सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंगों में से एक हैं जो शरीर के मध्य भाग में स्थित होते हैं। गुर्दों के खराब होने के अनेक कारण हैं, परन्तु इस रोग के कारणों को मुख्यत: तीन भागों में विभाजित किया गया है।
एक्यूट रीनल फेल्योर
इसके मुख्य कारण हैं – शरीर में पानी की कमी (डीहाइड्रेशन) और वि भिन्न प्रकार के संक्रमण। इसके अलावा ब्लडप्रेशर का अचानक बढ़ जाना और हेमरेज या दुर्घटना आदि। एक्यूट रीनल फेल्योर की स्थिति में समय से इलाज हो जाने से मरीज पहले की तरह स्वस्थ हो जाता है।
क्रानिक रीनल फेल्योर
इसे संक्षेप में सी आर एफ कहते हैं। बचपन या जन्म से गुर्दे में आनुवंशिक विकार, ब्लड प्रेशर, मधुमेह, गुर्दे या यूरेटर में स्टोन, यूरेनरी ट्रैक इंफेक्शन और लंबे समय से किसी घातक बीमारी के इलाज में कई दर्द निवारक दवाओं के लगातार सेवन से भी सी आर एफ के लक्षण प्रकट होते हैं।
क्रानिक रीनल फेल्योर वाले व्यक्ति नमक, हाई प्रोटीनयुक्त खाद्य पदार्थों जैसे दूध, घी, मांस, अंडा और रसीले फलों का सेवन कम से कम करें।
नेफ्रोटिक सिंड्रोम
इसमें गुर्दे से ज्यादा मात्रा में प्रोटीन निकलती है और आगे चलकर गुर्दो का क्रानिक रीनल फेल्योर की स्थिति में जाने का खतरा रहता है।
उपचार
जब गुर्दे पूरी तरह खराब हो जाते हैं, तो उनका इलाज चार प्रकार से संभव है। पहला, हीमोडायलिसिस। दूसरा सी ए पी डी (कांटिन्यूअस एंबुलेटरी पैराटोनियल डायलिसिस)। तीसरी प्रक्रिया है आटोमेटिड पैराटोनियल डायलिसिस (ए पी डी) और चौथी है गुर्दा प्रत्यारोपण।
हीमोडायलिसिस की प्रक्रिया में आर्टीफिशियल किडनी मशीन द्वारा खून की सफाई की जाती है। यह डायलिसिस सप्ताह में कम से कम 2 से 3 बार की जाती है। इसके लिए मरीज को डायलिसिस केन्द्र जाना पड़ता है।
डायलिसिस की दूसरी प्रक्रिया सी ए पी डी है। इस प्रक्रिया में एक छोटी सी ट्यूब कैथेटर पेट की पैरीटोनियल झिल्ली में लगाई जाती है और द्रव्य (दवाई का पानी) द्वारा मरीज को स्वत: हर 4 से 6 घंटे पर डायलिसिस करना पड़ता है। तीसरी प्रक्रिया है ए पी डी जो मुख्यत: सी ए पी डी की तरह ही होती है। बस फर्क यह है कि यह पूरी प्रक्रिया मशीन के द्वारा होती है। मरीज अपने घर पर इस छोटी मशीीन के द्वारा डायलिसिस कर सकता है। यह प्रक्रिया रात में सोते समय की जाती है।
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