थोड़ा सा भी परिश्रम करने पर, तेज चलने पर, उठने-बैठने पर या इसी प्रकार के अन्य कार्य करने पर दिल की धड़कन असामान्य हो जाती है।
दिल की धड़कन असामान्य होना दिल की कमजोरी का प्रतीक होता है। इससे रक्त संचार भी बढ़ जाता है और घबराहट सी लगने लगती है। इसका घर पर सामान्य इलाज इस प्रकार किया जा सकता है-
* 10 ग्राम अनार के पत्ते लेकर 10 ग्राम पानी में डालकर हल्की आँच पर उबालें। यह काढ़ा सुबह-शाम प्रतिदिन पीने से दिल मजबूत बनता है और दिल की धड़कन सामान्य होती है।
* गाजर के 200 ग्राम ताजे रस में 100 ग्राम पालक का रस मिलाकर सुबह-सुबह प्रतिदिन पीने से दिल की धड़कन काबू में रहती है, दिल मजबूत रहता है तथा दिल से संबंधित सभी विकार दूर होते हैं।
* हृदय रोगी को खूब मथकर मक्खन निकालकर बनाई हुई छाछ एक गिलास प्रतिदिन पिलाई जाए तो हृदय की रक्तवाहिनियों में जमा चर्बी कम हो जाती है तथा दिल की धड़कन व घबराहट दूर होती है।
* आलूबुखारा व अनार खाने से भी दिल की बढ़ी हुई धड़कन काबू में होती है।
अन्य उपचार
लाल चंदन, सफेद चंदन, कपूर, मुलहठी, नीम के पत्ते, मेहंदी के पत्ते, मजीठ, गेरू, हिरमिची, बबूल के फूल और मूँगा भस्म सभी समान मात्रा में लें।
विधि : मूँगा भस्म को छोड़कर अन्य सभी औषधियों का कपड़छान चूर्ण बना लें। फिर चूर्ण तथा मूँगा भस्म को मिलाकर एकसार कर लें व एक शीशी में भर लें।
सेवन : बड़ों को चार रत्ती व बच्चों को आधा रत्ती से एक रत्ती तक दिन में दो बार केवड़ा अर्क, गुलाब अर्क या गाजवान अर्क के साथ दें।
गुर्दे हमारे शरीर के सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंगों में से एक हैं जो शरीर के मध्य भाग में स्थित होते हैं। गुर्दों के खराब होने के अनेक कारण हैं, परन्तु इस रोग के कारणों को मुख्यत: तीन भागों में विभाजित किया गया है।
एक्यूट रीनल फेल्योर
इसके मुख्य कारण हैं – शरीर में पानी की कमी (डीहाइड्रेशन) और वि भिन्न प्रकार के संक्रमण। इसके अलावा ब्लडप्रेशर का अचानक बढ़ जाना और हेमरेज या दुर्घटना आदि। एक्यूट रीनल फेल्योर की स्थिति में समय से इलाज हो जाने से मरीज पहले की तरह स्वस्थ हो जाता है।
क्रानिक रीनल फेल्योर
इसे संक्षेप में सी आर एफ कहते हैं। बचपन या जन्म से गुर्दे में आनुवंशिक विकार, ब्लड प्रेशर, मधुमेह, गुर्दे या यूरेटर में स्टोन, यूरेनरी ट्रैक इंफेक्शन और लंबे समय से किसी घातक बीमारी के इलाज में कई दर्द निवारक दवाओं के लगातार सेवन से भी सी आर एफ के लक्षण प्रकट होते हैं।
क्रानिक रीनल फेल्योर वाले व्यक्ति नमक, हाई प्रोटीनयुक्त खाद्य पदार्थों जैसे दूध, घी, मांस, अंडा और रसीले फलों का सेवन कम से कम करें।
नेफ्रोटिक सिंड्रोम
इसमें गुर्दे से ज्यादा मात्रा में प्रोटीन निकलती है और आगे चलकर गुर्दो का क्रानिक रीनल फेल्योर की स्थिति में जाने का खतरा रहता है।
उपचार
जब गुर्दे पूरी तरह खराब हो जाते हैं, तो उनका इलाज चार प्रकार से संभव है। पहला, हीमोडायलिसिस। दूसरा सी ए पी डी (कांटिन्यूअस एंबुलेटरी पैराटोनियल डायलिसिस)। तीसरी प्रक्रिया है आटोमेटिड पैराटोनियल डायलिसिस (ए पी डी) और चौथी है गुर्दा प्रत्यारोपण।
हीमोडायलिसिस की प्रक्रिया में आर्टीफिशियल किडनी मशीन द्वारा खून की सफाई की जाती है। यह डायलिसिस सप्ताह में कम से कम 2 से 3 बार की जाती है। इसके लिए मरीज को डायलिसिस केन्द्र जाना पड़ता है।
डायलिसिस की दूसरी प्रक्रिया सी ए पी डी है। इस प्रक्रिया में एक छोटी सी ट्यूब कैथेटर पेट की पैरीटोनियल झिल्ली में लगाई जाती है और द्रव्य (दवाई का पानी) द्वारा मरीज को स्वत: हर 4 से 6 घंटे पर डायलिसिस करना पड़ता है। तीसरी प्रक्रिया है ए पी डी जो मुख्यत: सी ए पी डी की तरह ही होती है। बस फर्क यह है कि यह पूरी प्रक्रिया मशीन के द्वारा होती है। मरीज अपने घर पर इस छोटी मशीीन के द्वारा डायलिसिस कर सकता है। यह प्रक्रिया रात में सोते समय की जाती है।
प्रत्यारोपण की जरूरत
कई बार गुर्दा प्रत्यारोपण की आवश्यकता पड़ती है। इस प्रक्रिया में मरीज और दानकर्ता के ब्लड ग्रुप की मैचिंग के साथ कई प्रकार के आवश्यक टेस्ट व टिश्यू मैच किए जाते हैं। दानकर्ता का पूर्ण रूप से स्वस्थ होना अति आवश्यक होता है। गुर्दा प्रत्यारोपण के बाद का जीवन परिवर्तित जीवन शैली, दवाइयों का नियमित सेवन, खान-पान में परहेज, साफ-सफाई का पूरा ख्याल रखना और संक्रमण से बचाव आदि बातों पर निर्भर करता है।
उच्च रक्तचाप रोग नहीं है बल्कि शरी की रक्षात्मक प्रणाली एवं संस्थान ठीक करने के लिए संकेत है। उच्च रक्तचाप आधुनिक युग की देन है जिसके फलस्वरूप पक्षाघात (लकवा), गुर्दे बेकार, दृष्टिदोष, अति दुर्बलता एवं हृदय रोग इत्यादि हो जाते हैं।
लक्ष्ण:- प्रात: चलते समय सिर व गर्दन के पीछे दर्द, बेचैनी, चिड़चिड़ापन, मानसिक असंतुलन, सिरदर्द, छाती में दर्द, घबराहट, क्रोध, जल्दी उत्तेजित हो जाना, चेहरे पर तनाव, पाचन संस्थान की खराबी, आंखों का लाल होना, हृदय की धड़कन बढ़ जाना, अनिद्रा, नाक से खून आना इत्यादि एवं रक्तचाप सामान्य से अधिक हो जाना।
कारण:- कब्ज, अपच, रक्त कोलेस्ट्रोल बढ़ जाना, धूम्रपान, अंत:स्रावी ग्रन्थियों (endocrine glands) का ठीक काम न करना, तनाव, गुर्दे की खराबी, मोटापा, गलत आहार-विहार, अम्लकारक खाद्य पदार्थो, नमक, चाय, काफी, सॉस, तला-भुना मसालेदार गरिष्ठ भोजन इत्यादि का अधिक सेवन तथा क्षमता से अधिक मानसिक कार्य करना, उचित व्यायाम एवं विश्राम का अभाव इत्यादि। गर्भावस्था में Toximia हो जाने के कारण भी उच्च रक्तचाप बढ़ जाता है।
उपचार
उपरोक्त कारणों को दूर करें। यथाशक्ति कुछ दिन रसाहार (खीरा रस, गाजर रस, केले के तने का रस, चुकन्दर का रस, बथुआ-हरा धनिया-पालक इत्यादि का रस, नारियल पानी, नींबू शहद का पानी, घीया का रस, गेहूं के जवारे का रस, मौसम्मी का रस, गाय की छाछ) प्याज, ककड़ी, टमाटर, संतरा, लौकी, सोयाबीन की दही फिर कुछ दिन अपक्वाहार (फल, सलाद, अंकुरित) बाद में एक बार फल, एक बार सलाद, चोकर समेत आटे की रोटी एवं सब्जी।
तुलसी के पत्ते – काली मिर्च के साथ सेवन करें। प्रात: खाली पेट तुलसी के पत्ते शहद लगाकर चबायें। प्रात: एक नींबू का रस एवं एक चम्मच शहद पानी में मिलाकर पीना बहुत की लाभकारी है। रात भर तांबे के बर्तन में रखा पानी पियें। त्रिफला का सेवन विशेष लाभकारी है।
Sri Tulsi Das wrote Hanuman chalisa in the praise of Hanuman. Though I listen and chant it everyday night before I go into bed & now it's becoming deeper and profound for me. I could see that Sri Tulsi Das has put all the qualities of a perfected devotee in this forty verses song. Also in Narada Bhakti Sutra, Narada Muni included Hanuman among 13 Devotees who have Mastered the path devotion. In this post I have put the Hanuman Chalisa highlighting the qualities which Sri Tulsi Das has quoted in this beautiful song in the praise of Hanuman.
श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुर सुधार,बरनौ रघुवर बिमल यस, जो दायक फल चार. बुधिहीन तनु जानी के, सुमिरो पवन कुमार,बल बुधि विद्या देहु मोहीं, हरौ कलेस वीकार.
Sri Guru charana saroja raj, Nija mana mukura sudhar,baranau Raghuvara vimala yasa, Jo dayaka phala charBudhiheen thanu jaani ke, Sumeero pavana kumar,Bala budhi vidhya dehu mohee, Harau klesa bikar.
मस्तिष्क को रखें शांत बहुत बेचैनी है? तनावग्रस्त हैं? किसी दु:ख को लेकर चिंता में घिरे हैं? या यूँ ही चिंता में रहने की आदत हो चली है? यह भी हो सकता है कि आपको सिरदर्द की शिकायत हो। कहीं ऐसा तो नहीं कि दिमागी झंझावतों की वजह से आप रातभर करवटें बदलते रहते हों। खैर, जो भी हो, आओ हम आपको दिमाग को शांत रखने के यौगिक उपाय बताते हैं। दिमाग को शांत रखने के यौगिक उपाय
युवावस्था में सभी लड़के-लड़कियों को मुँहासे होते हैं, कुछ लोगों को ज्यादा मुँहासे होते हैं और उनका चेहरा बिगड़ जाता है।
कुछ लोग मुँहासों को फोड़ देते हैं तो ये और ज्यादा खराब हो जाते हैं तथा त्वचा पर दाग छोड़ देते हैं। इनका सर्वप्रथम इलाज तो यह है कि इन्हें फोड़ें नहीं, अपने-आप ठीक होने दें।
मुँहासे होने का कारण एक प्रकार का हॉर्मोन है। महिलाओं में एंडोजेन नामक हारमोन होता है, जो बिसियस ग्रंथि को उत्तेजित करता है, यह ग्रंथि सेबम नामक तेल बनाती है, यही तेल मुँहासों का निर्माण करता है।